खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली  रानी  थी – कविता , महान वीरांगना झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर (18 जून 1857) – JobsIndia

झाँसी की रानी   सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृवुफटी तानी थी, बूढ़े भारत में भी आई पिफर से नयी जवानी थी, गुमी हुई आशादी की कीमत सबने पहचानी थी, दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,   चमक उठी सन् सत्तावन में वह  तलवार  पुरानी  थी। बुंदेले    हरबोलों    वेफ    मुँह हमने  सुनी  कहानी  थी। खूब  लड़ी  मर्दानी  वह तो झाँसीवाली    रानी    थी।।   कानपुर  वेफ  नाना  की  मुँहबोली  बहन  ‘छबीली’  थी, लक्ष्मीबाई  नाम,  पिता  की  वह  संतान  अवेफली  थी, नाना वेफ संग पढ़ती थी वह, नाना वेफ संग खेली थी, बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी   वीर  शिवाजी  की  गाथाएँ उसको  याद  शबानी  थीं। बुंदेले  हरबोलों  वेफ  मुँह हमने  सुनी  कहानी  थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली  रानी  थी।।   लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार, देख  मराठे  पुलकित  होते  उसकी  तलवारों  वेफ  वार, नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार, सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना, ये थे उसवेफ प्रिय खिलवार,     महाराष्ट्र-वुफल-देवी उसकी भी  आराध्य  भवानी  थी। बुंदेले  हरबोलों  वेफ  मुँह हमने  सुनी  कहानी  थी। खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसीवाली  रानी  थी।।   हुई  वीरता  की  वैभव  वेफ  साथ  सगाई  झाँसी  में, ब्याह  हुआ  रानी  बन  आई  लक्ष्मीबाई  झाँसी  में, राजमहल  में  बजी  बधई  खुशियाँ  छाईं  झाँसी  में, सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में,   चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी। … Read more